कशमकश

                        

                   कशमकश 

 टूटे सपनों की कब्रिस्तान हूँ, 
लोगों की नजरों में इंसान हूँ,
जी रही हूँ खुश हूँ,
इन धारणाओं से परेशान हूँ ।

कोई क्या जाने, 
रोज मर के जीना क्या होता है,
पल-पल दिल का ठंडा पड़ना क्या होता है,
हर वक्त खुद को धिक्कारना क्या होता है।

क्या जाने कोई, 
दिल के सपनों का आँखों के सामने चूर-चूर होना क्या होता है,
 क्या जाने कोई,
 किसी को अपने सपनों की जिंदगी जिते देखना क्या होता है।

क्या जानेगा कोई, 
रात को रोते रोते सोना, 
उस पर भी छुप कर रोना,  कैसा होता है

क्या समझेगा कोई,
खुद से नफरत करना कैसा होता है , 
खुद को कोसना क्या होता है 
जिंदगी के हर पल को धिक्कारना कैसा होता है। 

क्या समझ सकेगा, कोई किसी को !
हर किसी की कोई कहानी है यहाँ, 
हर कोई कहीं न कहीं लड़ रहा है।

होती है जिंदगी खूबसूरत, 
पर हर किसी के लिए नही,
कईयों के लिए  लड़ना ही  
जीना होता है।


- Komal

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